...मानव काफी संतुष्ट रहते थे यदि वह अजनबी और जंगली जानवरों के हमले से बचे रहते थे और उनसे चोट नहीं खाते थे, और उनके हमले से अपने को बचने के लिए उनसे लड़ने यही उनका मुख्य उद्देश्य होता था। परंतु आगे चलकर उन्होंने सीखा की कैसे जंगली जानवरों का इस्तेमाल अपने हित में किया जाए, कैसे उनके मांस पर निर्भर रहा जाए, और उनसे प्राप्त ऊन से कपड़े बनाए जाएं, उनके पित्त और शारब से दवाएं बनाएं, उनकी खाल को ढकने के लिए प्रयोग करें, फिर भी कुछ डर के साथ। यदि जंगली जानवर ने हमला बोला, और वह क्रूर और अनियंत्रित हो गया और उसने मार दिया। फिर भी सभी सावधान थे की उन्हें शत्रु से चोट नहीं पहुंचे, बल्कि संवेदनशील इतने की उनसे कैसे फायदा लिया जाए, हमें संदेह नहीं करना चाहिए, बल्कि उन तरीकों और योजनाओं को जानना चाहिए की कैसे उनसे फायदा उठाया जाए, यह जानते हुए की बिना दुश्मन के जीवन असंभव है। किसान अकेला काफी कुछ खुद से नहीं सकता था, न ही शिकारी हर तरह के जानवर का अकेला शिकार कर सकता था, इसलिए दोनों को जरूरत थी उस माध्यम की जो उनके लिए फायदेमंद हो सके। एक बंजर खेत में और दूसरा जंगली जानवरों के शिकार में उसकी जरूरतों के अनुसार मदद कर सकें।
डा. आलोक कुमार एक शिक्षक, लेखक और अनुवादक, और प्रशिक्षु राजनीतिज्ञ भी. आगरा में रहते हैं और डा. भीम राव अंबेडकर वि. वि. के एक संस्थान औद्योगिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (IET) में गणित के प्रवक्ता हैं.
हमेशा विश्वास करते हैं की कोई भी कुछ बेहतर कर सकता है यदि वह सोचता है.
एक शिक्षक और लेखक के रुप में गणित और कंप्यूटर से लगाव है. नियमित रुप से आम रुचि के लेख लिखते हैं और पुस्तकों का अनुवाद करते हैं. लेखक और अनुवादक के रुप में जिनकी मातृ भाषा हिंदी है उन्हें विश्व के श्रेष्ठ साहित्य और जानकारियों से अवगत करने का छोटा प्रयास भी करते हैं.
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