जिस तरह जंगल का सौंदर्य उसके बिखराव तथा विविधता में है ना की व्यवस्था में, वैसा बिखराव तथा विविधता का सौंदर्य इस पुस्तक में मिलेगा। इस पुस्तक का कोई आरंभ या अंत नहीं मिलेगा, यह पुस्तक रोज खुशबू बदलने वाले इत्र की तरह है। यह पुस्तक कभी ना खत्म होने वाली गाथा है। यह हर रोज पाठक को चिंतन और मनन के लिए पर्याप्त सामग्री प्रदान करेगी। इस पुस्तक को आप किसी भी पृष्ठ से पढ़ना प्रारंभ कर सकते हैं, आपको कभी भी सातत्य की कमी का एहसास नहीं होगा।
महत्वपूर्ण अंश
● जो भी आदमी सृजन कर सकता है, शैतान नहीं हो सकता और जो भी आदमी सृजन नहीं कर सकता, लाख अपने को समझाये कि संत है, वह संत नहीं हो सकता, अगर तुम बनने में नहीं लग सके तो मिटने में लगोगे।
● अज्ञानी होना उतने शर्म की बात नहीं है, जितना काम करने की इच्छा का न होना होता है। जो काम को बोझ समझते हैं, वे अनिच्छा से ही काम करते हैं। ओशो कहते हैं ईश्वर कोई वस्तु नहीं, एक कृति है, और वह उसे ही प्राप्त होते हैं जो इस कृति की सृष्टि करता है।
● क्रोध जीवों में प्रकृति का आत्मरक्षा के लिए दिया हुआ हथियार है। जब तक यह नैसर्गिक है, तब तक समस्या नहीं है। जब दबाया जाता है, तब रोग बनता है। दमित क्रोध शरीर के अन्दर घाव बनाता है।
● पूरी रामायण हमारे भीतर घटित हो रही है। राम आत्मा है, लक्षमण सजगता है। सीता मन है, और रावण अहंकार। सीता सुनहरे हिरण में आसक्त हो गई, मन का स्वभाव डगमगाना है, जिस प्रकार पानी का स्वभाव बहना है। हमारा मन वस्तुओं, विषयों के प्रति आसक्त होकर उसकी तरफ बढ़ने लगता है, उसका अहंकार द्वारा अपहरण हो जाता है, और आत्मा से अलग हो जाता है। हनुमान को पवनपुत्र कहा जाता है। हनुमान की मदद से राम को सीता मिल जाती है। यानी सांस और सजगता के साथ (हनुमान व लक्षमण) मन सीता और आत्मा (राम) का मिलन होता है।● दार्शनिक सिसरों तो यहाँ तक कहते हैं, कि जहाँ जिन्दगी है वहाँ उम्मीद है और अगर आप उम्मीद नहीं रखते हो, तो इस जीवन का क्या अर्थ?
इस पुस्तक में यदि कहीं व्याकरण और मात्राओं की त्रुटि मिले तो उसका जिम्मेदार मैं हूं ना की पिताजी क्योंकि इस पुस्तक को वर्तमान स्वरूप में संपादित मैंने ही किया है।
डॉ प्रिय द्विवेदी (पीएचडी)
असिस्टेंट प्रोफेसर, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, ओमान