मेरी कहानियाँ-रामधारी सिंह दिवाकर (Hindi Sahitya): Meri Kahaniyan-Ramdhari Singh Divakar (Hindi Stories)

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· Bhartiya Sahitya Inc.
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 रामधारी सिंह दिवाकर की इन कहानियों में गाँव का जटिल यथार्थ आद्यंत उपलब्ध है। गाँवों की सम्यक् तस्वीर का आधुनिक रूप जो विकास और पिछड़ेपन के संयुक्त द्वंद्वों से उत्पन्न होता है, वही यहाँ चित्रित हुआ है। आर्थिक आधार के मूल में रक्त-संबंधों के बीच गहरे दबावों का वैसा प्रभावपूर्ण चित्रण भी दिवाकर के समकालीन अन्य कहानीकारों में प्रायः नहीं मिलता है। कहा जा सकता है कि ये कहानियाँ उन हज़ारों-हज़ार गाँवों की पदचाप और ध्वनियों की खरी रचनाएँ हैं, जो किसी पाठ्यक्रम के चयन की प्रत्याशी नहीं, बल्कि आधुनिक ग्राम और ग्रामवासी की आत्मा का अनुपम अंकन हैं।

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रामधारी सिंह दिवाकर

जन्म :- 1 जनवरी, 1945

शिक्षा :- एम.ए., पी-एच.डी.।

बिहार के गाँव नरपतगंज (जिला अरिया) में एक निम्न-मध्यवर्गीय किसान परिवार में जन्म। आरम्भिक जीवन गाँव में बीता। आरंभिक शिक्षा गाँव के स्कूलों और महाविद्यालयी शिक्षा फारबिस गंज और मुजफ्फरपुर में। भागलपुर विश्विद्यालय से एम.ए. हिंदी। ‘जैनेंद्र की भाषा’ शोध-प्रबंध पर भागलपुर विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की उपाधि।

1967 से महाविद्यालयों में अध्यापन-कार्य। मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष। प्रतिनियुक्ति पर 1997 से बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना के निदेशक-पद पर कार्यरत।

पहली कहानी ‘नई कहानियाँ’ के जून 1971 के अंक में प्रकाशित। तब से अनवरत लेखन। हिंदी की तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक कहानियाँ, उपन्यास आदि प्रकाशित।

कृतियाँ :-

उपन्यास :- क्या घर क्या परदेस, काली सुबह का सूरज, पंचमी तत्पुरुष, आग-पानी आकाश, टूटते दायरे, अकाल सन्ध्या।


कहानी-संग्रह :- नए गाँव में, अलग-अलग अपरिचय, बीच से टूटा हुआ, नया घर चढ़े, सरहद के पार, धरातल :- (काकपद, धरातल, आतंक, स्वयं-साक्षी, अनाम संज्ञा, नवजात, नायक-प्रतिनायक, संबंध-वाचक, खोयी हुई जमीन, नीड़पाखी।), मखान पोखर, माटी-पानी, वर्णाश्रम :- (वर्णाश्रम, चोर दरवाजा, छोटे लोग, नवोदय, पुनरागमन, आखिरी लोग, पोलटिस, प्रमाण-पत्र, अपना घर, इस पार के लोग, दुर्घटना, मानो दीदी, गाँठ, बड़े होते लोग।), दस प्रतिनिधि कहानियाँ।

संपादित :- कथा भारती, गल्प भारती।

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