लेखक ने इस पुस्तक में संस्कृत वाङ्गमय सम्बन्धी विस्तृत ज्ञान-राशि को बड़े कौशल से संजोने का स्तुत्य प्रयास किया है। इस में कई तथ्यों को बड़े परिश्रम के साथ प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने इस छोटी सी पुस्तक में ढेर सारी जानकारी को गागर में सागर की तरह समाविष्ट करने में सफलता प्राप्त की है। पुस्तक उपयोगी तथा ज्ञानवर्धक है। विद्यार्थियों तथा विद्वानों दोनों के लिए ही इसका सामान महत्त्व है। इसमें बहुत सी ऐसी ज्ञातव्य जानकारियां प्राप्त होती हैं, जिनकी ओर साधारणतया बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है।
हो सकता है कि कुछ ज्ञातव्य बातें छूट गई हों। पुस्तक के पाठकों तथा विद्वानों तक पहुँचाने पर उनके सुझाव तथा नई जानकारी के लेखक को प्राप्त होने पर इसमें और नई जानकारियों की वृद्धि होगी। इस पुस्तक के दूसरे संस्करण में लेखक तथा विद्वानों के प्रयत्न तथा सहयोग से यह और अधिक पूर्ण तथा उपयोगी बन सकेगी।
लेखक का प्रयास स्तुत्य तथा महत्त्वपूर्ण है। आशा है इस प्रयास को विद्वानों का पूर्ण समर्थन तथा सहयोग प्राप्त होगा। लेखक के परिश्रम की सार्थकता इसी में है कि इस पुस्तक से पाठक लाभान्वित हों।
सभी साहित्यप्रेमियों के पढ़ने लायक है। आजकल किसी भी विषय का आधारभूत परिचय ही काफी है। बोलने का तात्पर्य है कि विषय की हिंट ही काफी है। उसके बारे में बाकि विस्तार तो गूगल पर या अन्य साधनों से मिल जाता है। केवल साहित्य से जुड़े हुए प्रारम्भिक संस्कार को बनाने की आवश्यकता होती है, jise यह पुस्तक बखूबी बना देती है। संस्कृत साहित्य का भरपूर आनंद लेने के लिए इस पुस्तक का कोई सानी नहीं है। यह छोटी जरूर है, पर गागर में सागर की तरह है।
लेखक एक जाने-माने साहित्यकार व इतिहासकार हैं. लेखन उनका एक जन्मजातीय शौक है. उन्होंने संस्कृत व हिंदी, दो विषयों में एम.ए. की है, तथा योग दर्शन पर पी.एच.डी. की है. उन्होंने कुल मिलाकर 7 पुस्तकें लिखी हैं. सभी पुस्तकें हिंदी में हैं. उनकी लेखन -शैली सरल, साधारण, स्वाभाविक व शुद्ध भारतीय है. उन्हें पहाड़ों के देवी-देवताओं से बहुत लगाव है. यही कारण है कि उनकी प्रत्येक पुस्तक में उनका विशेष व आश्चर्यजनक वर्णन उपलब्ध होता है.